Arnab goswami Biography in Hindi | अर्नब गोस्वामी का जीवन परिचय

आपने स्वामी विवेकानंद की वह फेमस लाइन तो सुनी ही होगी:
“तुम्हें मैं पसंद आऊं या ना आऊं, दोनों में मेरा ही फायदा है। अगर पसंद आया तो तुम्हारे दिल में रहूंगा और अगर ना पसंद आया तो तुम्हारे दिमाग में रहूंगा।”
तो कुछ ऐसी ही कहानी अर्नब गोस्वामी की है। अर्नब गोस्वामी वह इंसान हैं जिन्हें कुछ लोग पसंद करते हैं और कुछ लोग नापसंद, लेकिन कोई भी उन्हें इग्नोर नहीं कर सकता। वैसे तो शायद आप भी उन्हें जानते ही होंगे, लेकिन चलो, एक बार मैं भी उनका इंट्रोडक्शन दे देता हूं। अरनब रंजन गोस्वामी एक इंडियन जर्नलिस्ट, टी.वी. न्यूज़ प्रेजेंटर और रिपब्लिक टी.वी. के एडिटर-इन-चीफ हैं। साथ ही वह न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन के प्रेसिडेंट हैं। उन्होंने जर्नलिज़्म में अपने करियर की शुरुआत 1995 में की और वह खासतौर पर अपनी एग्रेसिव जर्नलिज़्म के लिए फेमस हैं।
अर्नब गोस्वामी की सबसे फेमस पंचलाइन है – “द नेशन वांट्स टू नो” और अब तो यह इंडिया के पॉप कल्चर का हिस्सा बन चुकी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस लाइन को अर्नब ने इन्वेंट नहीं किया, बल्कि इस लाइन का इस्तेमाल एक पॉलिटिशियन ने अर्नब के लिए किया था? और यह लाइन अर्नब के दिमाग में इस कदर बैठ गई कि उन्होंने इसे अपने शो में पंचलाइन ही बना लिया। उनके होस्ट किए गए कुछ फेमस शोज़ हैं – “द न्यूज़ ऑवर,” “फ्रैंकली स्पीकिंग विद अर्नब,” “द डिबेट विद अर्नब” और “द नेशन वांट्स टू नो”।
7 मार्च 1973 को असम के गुवाहाटी में जन्मे अर्नब गोस्वामी के पिता इंडियन आर्मी में सेवा कर चुके हैं और बाद में वह भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा बने, जबकि उनकी मां सुप्रभा गोस्वामी एक राइटर हैं। क्या आप जानते हैं कि अर्नब असल में एक लॉयर बनना चाहते थे? लेकिन फिर उन्हें ऑक्सफोर्ड से फेलिक्स स्कॉलरशिप मिली और इसके बाद वह एक जर्नलिस्ट बन गए। हां, यह बात अलग है कि आज भी वह अपने न्यूज़ चैनल में एक लॉयर की तरह ही बर्ताव/बहस करते हैं – जहां वह लॉयर होते हैं और जनता जज। और उनका शो शुरू होता है उनकी फेमस स्टार लाइन – “द नेशन वांट्स टू नो” से।
आर्मी ऑफिसर का बेटा होने की वजह से उन्हें हर तीन-चार साल में शहर बदलना पड़ता था और इसी के चलते उन्होंने कई स्कूल भी बदले। उन्होंने अपनी पढ़ाई दिल्ली कैंटोनमेंट के सेंट मैरी स्कूल से पूरी की और अपनी सीनियर सेकेंडरी एग्जामिनेशन जबलपुर कैंटोनमेंट के केंद्रीय विद्यालय से पूरी की। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज से सोशियोलॉजी में डिग्री हासिल की। 1994 में वह इंग्लैंड चले गए, जहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सेंट एंड्रूज़ कॉलेज से सोशल एंथ्रोपोलॉजी में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। अर्नब गोस्वामी ने अपने जर्नलिज़्म करियर की शुरुआत कोलकाता में द टेलीग्राफ के साथ की और 1 साल के अंदर-अंदर वह दिल्ली शिफ्ट हो गए, जहां उन्होंने एन.डी.टी.वी. जॉइन किया।
आज भले ही अर्नब जर्नलिज़्म को लेकर बहुत सीरियस लगते हों, लेकिन एक समय ऐसा था जब दिल्ली में 9 साल तक रिपोर्टिंग करने के बाद उन्होंने जर्नलिज़्म छोड़ने का डिसाइड किया। लेकिन फिर वह मुंबई आए, जहां आकर उनका मन बदला और उन्होंने एक बार फिर से साल 2003 में जर्नलिज़्म में अपनी किस्मत आजमाने का सोचा। अर्नब गोस्वामी को “न्यूज़ टुनाइट” के लिए बेस्ट न्यूज़ एंकर ऑफ एशिया के तौर पर एशियन टेलीविज़न अवार्ड से नवाजा गया। साल 2006 में उन्होंने टाइम्स नाउ चैनल जॉइन किया और उसके एडिटर-इन-चीफ बने। टाइम्स नाउ में उन्होंने “फ्रैंकली स्पीकिंग विद अर्नब” शो होस्ट किया, जहां उन्होंने बेनज़ीर भुट्टो, हामिद करज़ई, दलाई लामा, हिलेरी क्लिंटन और देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जैसी बड़ी हस्तियों का इंटरव्यू लिया।
जिस टाइम्स नाउ चैनल के लिए उन्होंने इतनी मेहनत की थी, वहां से उन्होंने 1 नवंबर 2016 को इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वहां उन्हें अपने विचार रखने की आज़ादी नहीं मिली। 6 मई 2017 को उन्होंने अपने नए चैनल रिपब्लिक टी.वी. की शुरुआत की। और अपनी स्थापना के 100 हफ्तों के अंदर-अंदर रिपब्लिक टी.वी. देश का सबसे ज्यादा देखे जाने वाला इंग्लिश न्यूज़ चैनल बन गया। अर्नब गोस्वामी को उनकी जर्नलिज़्म के लिए साल 2008 में रामनाथ गोयनका अवार्ड से नवाजा गया। साल 2012 में उन्हें एन.बी.ए. अवार्ड्स फॉर न्यूज़ टेलीविज़न एडिटर-इन-चीफ ऑफ द ईयर से सम्मानित किया गया।
26/11 के मुंबई टेरर अटैक्स में उन्होंने 65 घंटे लगातार रिपोर्टिंग की थी। उनका मानना है कि “आप चाहे जो भी करें, लेकिन कभी भी देश के खिलाफ जाकर कुछ नहीं करना चाहिए।” अर्नब गोस्वामी आज उन जर्नलिस्ट्स में से एक हैं, जो अपने नाम और काम दोनों के लिए जाने जाते हैं।